Friday, January 28, 2011

यपग और उसकी सफलता

धर्मेन्द्र, अपनी जिन्दगी में बहुत सहज रहते हैं। यह उनकी खासियत है कि उनको किसी से ईष्र्या नहीं होती, इसीलिए हर कोई उनका आदर करता है। एक बार उनका कोई प्रशंसक उनसे अतिभावुकता में उनकी और उनके दोनों बेटों की खूब तारीफें किये जा रहा था। वे सुन रहे थे लेकिन अचानक उसने धरम जी से बेटों के समकालीन कलाकारों के बारे में कुछ कहा, यह कि आपके बेटे उनसे ज्यादा आगे हैं, तो इस पर उन्होंने तुरन्त उसको चुप रहने को कहा, और कहा कि ऐसी बातें मत करो, सब अच्छा काम करते हैं, सब मेरे बच्चे हैं। मुझे सभी पर फक्र है।

अभी ही एक चैनल पर सलाना अवार्ड्स में उनको लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया, तो उस अवसर पर शाहरुख ने उनके लिए बड़े अच्छे शब्द कहे। सलमान तो धरम जी की बेहद इज्जत करते हैं। उनके पिता सलीम से धरम जी की अच्छी आत्मीयता है। प्यार किया तो डरना क्या, सोहेल की फिल्म थी जिसमें धरम जी की भूमिका बहुत अच्छी भी थी। बात यहाँ, दरअसल यमला पगला दीवाना की होनी है जो दो सप्ताह पहले प्रदर्शित हुई थी और जिसे देश भर में अच्छी तरह देखा गया। हमने पहले चर्चा की भी थी कि इस फिल्म को देओल परिवार ने खूब प्रमोट किया और खास धरम जी अकेले ही अनेक शहरों में अपनी फिल्म के पक्ष में गये थे।

यह सब अनूठे योग ही कहे जाएँगे कि कैसे यमला पगला दीवाना, प्रतिज्ञा के एक लोकप्रिय गाने से प्रेरित नाम हुआ, कैसे तीनों देओल इस हास्य फिल्म का हिस्सा बने। धरम जी बताते हैं कि पहले वे इस फिल्म में नहीं थे, उनका रोल बाद में गढ़ा गया लेकिन समीकरण ऐसे बने कि फिल्म आलोचकों की विभिन्न राय के बावजूद चल गयी, सिनेमाहॉल में भी जब तक यह फिल्म चलती है, तालियाँ-सीटियाँ रह-रहकर खूब बजती हैं। इस फिल्म की खासियत यह है कि यह आज की फिल्मों की तरह हिंसक कहानी या प्रभाव से दूर है और एक अलग ढंग से दर्शकों का मनोरंजन करती है। विशुद्ध मनोरंजन फिल्म का उद्देश्य रहा जो कारगर साबित हुआ।

आमतौर पर मनोरंजनप्रधान सिनेमा को बौद्धिक तार्किकता से बाहर रखा जाना चाहिए, यही यमला पगला दीवाना को देखते हुए बात ध्यान में आती है। धर्मेन्द्र, इस फिल्म की सफलता से बेहद खुश हैं। प्रदर्शनबाद पार्टियाँ हुई हैं जिसमें उनके शुभचिन्तक खूब शामिल हुए हैं। एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि इस फिल्म के प्रदर्शन के अगले सप्ताह धोबीघाट प्रदर्शित हुई जिसका बाजार सीमित रहा, लिहाजा यमला पगला दीवाना के दर्शक सिनेमाहॉल और परिसर में उत्साहजनक उपस्थिति के साथ दिखायी दिए।

Wednesday, January 12, 2011

यमला पगला दीवाना

उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष थी जब प्रतिज्ञा फिल्म रिलीज हुई थी। इस फिल्म का प्रदर्शन साल 1975 का है। उसी के आसपास शोले अपना परचम फहरा रही थी। वीरू, बसन्ती को पाने के लिए तरह-तरह के जतन करता है, कभी आम के पेड़ पर निशाना लगाना सिखाता है तो कभी मन्दिर में शिव जी के मन्दिर में मूर्ति के पीछे से खड़े होकर लाउडस्पीकर से खुद भगवान बनकर बसन्ती को समझाता है। अपने दोस्त जय की भी मदद माँगता है और जब बात नहीं बनती तो पानी की टंकी के ऊपर चढक़र पूरे गाँव को धमकाकर आखिर मौसी से अपनी बात मनवाकर ही दम लेता है। और भी आसपास की तमाम फिल्में मनमोहन देसाई उनको लेकर धरमवीर और चाचा भतीजा बना रहे होते हैं।

प्रतिज्ञा इसी परिदृश्य की फिल्म है जिसका नायक बिगड़ैल शराबी है और एक पुलिस अधिकारी को बन्दी बनाकर पुलिस की वरदी पहनकर गाँव में अपना एक थाना स्थापित करता है। इस नायक की जिन्दगी बिल्कुल अलग है, अपनी हेकड़ी, ठसक और जेब में शराब की बोतल। अपनी ही तरह के चार पियक्कड़ों को भी पुलिस में भरती कर लिया है। नायिका से उसे प्यार मन ही मन है और नायिका को भी मगर यह बात वो नहीं जानता।

जिस समय यह फिल्म लगी थी, भोपाल में बीस हफ्ते चली थी। तब अखबार में फिल्म के विज्ञापन के साथ दो लाइन का यह वाक्य भी आता था, पूरे गाँव की लड़कियों ने अजीत को राखी बांधी मगर राधा ने नहीं, क्यों, जानने के लिए देखिए, प्रतिज्ञा। इसी प्रतिज्ञा का एक गाना, मस्ती भरा जिसमें धर्मेन्द्र जैसे अपनी सर्वज्ञ क्षमताओं के साथ परदे पर खुलकर सामने आ गये, मैं जट यमला पगला दीवाना.. .. ..।

दुलाल गुहा निर्देशित इस फिल्म की कहानी प्रख्यात लेखक नबेन्दु घोष ने लिखी थी, जिन्होंने धर्मेन्द्र की बन्दिनी से लेकर क्रोधी तक कितनी ही फिल्मों की पटकथाएँ लिखीं। विक्रम सिंह दहल के साथ धर्मेन्द्र स्वयं इस फिल्म के निर्माता भी थे। फिल्म अपने आपमें मुकम्मल मजा थी। स्वर्गीय मोहम्मद रफी का गाया गाना, मैं जट यमला, धर्मेन्द्र की स्थायी पहचान बन गया। पैंतीस वर्ष बाद का आज, वो महानायक अब पचहत्तर का है, अभी भी जोशीला, जवान। हाल में ही पचास साल पूरे किए हैं, फिल्म इण्डस्ट्री में अपनी सक्रियता के। खूब जोश के साथ, देश भर में घूम रहे हैं, अपनी नयी फिल्म यमला पगला दीवाना के प्रचार में। जवाँ चेहरे पर न तो शिकन, न थकान। टेलीविजन के कई शो में खूब नाचे-गाये हैं, धर्मेन्द्र।

धर्मेन्द्र को दरअसल अपने दर्शकों पर गहरा विश्वास है, व्यवहारिक और मिलनसार वे सबसे ज्यादा हैं। प्रेक्षकों को इस समय पूरा विश्वास है कि जिस तरह से धर्मेन्द्र दर्शकों को सिनेमाघर आकर फिल्म देखने के लिए निमंत्रित कर रहे हैं, अपने अनेकानेक हास्य किरदारों में खुदसिरमौर रहे धर्मेन्द्र, मजा बांध देंगे।

Monday, January 3, 2011

यमला पगला दीवाना

हमारे समय में सिनेमा में दिलचस्प चीजें दिखायी दे रही हैं। अचानक एक महिला निर्देशक को लगा तो उसने सत्तर के दशक का सिनेमा आज की कथा में रच-बस कर अपने लिए बड़ी प्रतिष्ठा अर्जित कर ली। उससे प्रेरणा लेकर कुछ प्रतिभाशाली निर्देशकों उस तरह का सिनेमा बनाकर अपना नाम भी चमका लिया। ओम शान्ति ओम से लेकर दबंग तक ऐसी ही कुछ फिल्में नाम-दाम कमाने में काफी कामयाब रहीं।

अब दिलचस्प यह है कि उस दौर के महानायक ने अँगड़ाई ली है। पाठक जानते ही हैं कि वो दशक जिन सितारों के नाम रहा है उनमें मुख्य रूप से धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, शत्रुघ्र सिन्हा, शशि कपूर और ऋषि कपूर आदि शामिल रहे हैं। इन सितारों के नाम के साथ हमारे सामने आइने की तरह सब कुछ साफ-साफ दीखने लगता है। इनमें से बहुतेरे सितारे लगभग एक दशक से बहुत कम दिखायी दे रहे थे। इस बीच हिन्दी सिनेमा का परिदृश्य बदल गया।

अस्सी और नब्बे के दशक के सितारे आये और जाते हुए दीखे। कुछ सलमान, आमिर, शाहरुख से जमे हैं मगर यह समय अब रणबीर कपूर और नील नितिन मुकेश के नाम से भी जाना जाता है और शाहिद कपूर के नाम से भी। अब हम इसी दृश्य में एक बार फिर कुछ नवाचार देखते हैं। हमें कुछ वर्ष पहले अमिताभ बच्चन की फिल्म बागवान को याद करना चाहिए और सरकार को भी।

हमें भारतीय सिनेमा के महानायक का परिपक्व चेहरा दिखायी देता है। नये साल की शुरूआत में हम एक और महानायक को बहुत उत्साह और ऊर्जा के साथ देख रहे हैं। यह महानायक हैं धर्मेन्द्र। धर्मेन्द्र अभी दिसम्बर में पचहत्तर बरस के हुए हैं और इसी साल उनको फिल्म जगत में सक्रियता के पाँच दशक पूरे हुए हैं। दिल भी तेरा हम भी तेरे, उनकी पहली फिल्म थी, जिसमें उन्हें अर्जुन हिंगोरानी ने निर्देशित किया था।

अर्जुन हिंगोरानी, उनके बेहद अजीज दोस्त हैं जो इस जन्मदिन पर भी उनके घर में बैठे अपने दोस्त महानायक और प्रशंसकों से घिरा देखकर मुग्ध हो रहे थे। धर्मेन्द्र की नयी फिल्म यमला पगला दीवाना इसी माह के दूसरे सप्ताह में प्रदर्शित हो रही है। यह शीर्षक पैंतीस साल पहले की उन्हीं की सुपरहिट फिल्म प्रतिज्ञा के जिस गाने से प्रेरित है, उसका एक अलग अन्दाज, इस नाम की फिल्म में दिखायी देगा।

अनिल शर्मा निर्देशित अपने में तीनो देओल थे, अब यमला पगला दीवाना में भी तीनों देओल हैं और जोर-शोर से इस फिल्म के प्रचार-प्रसार में हिस्सा ले रहे हैं। अपने चाहने वालों के बीच गर्मजोशी के साथ पहुँचने का इस बार उनके पास अलग ही मंत्र है। फिल्म की सफलता के लिए बड़े देओल आश्वस्त भी बहुत हैं।

Wednesday, December 15, 2010

धरम पा के जन्मदिन पर

रंगत कुछ अलग नजर आ रही थी इस बार उनके घर की। जन्मदिन के अलावा भी वक्त-वक्त पर उनके घर जाते हुए, मिलते बात करते हुए शायद अब पन्द्रह से अधिक वर्ष होते आ रहे हैं। बंगले के बाहर तमाम लोग, भीतर भी खूब सारे। बहुत से ऐसे जो उनके प्रिय परिचित बरसों के रिश्तों और अनुभवों से बंधे, अपनी तरह से आ रहे थे, जा रहे थे। इन सबके साथ थे ढेर सा प्रशंसक, मित्रों के साथ, परिवारों के साथ। सभी में गजब का क्रेज।

सोफे पर धर्मेन्द्र बैठे हुए। उनके आसपास घेरे बैठे लोग, आगे-पीछे बैठे लोग, जिनको जहाँ जगह मिले, जमे हुए लोग, सब के सब खुश। धर्मेन्द्र सबकी हर आकांक्षा पूरी कर रहे हैं। आटोग्राफ, फोटो जो और जितनी। बीच-बीच में कई मुरीदों के मोबाइल के कॉलर टोन में, पैंतीस वर्ष पहले की फिल्म प्रतिज्ञा का एक ही सा बजता गाना, मैं जट यमला पगला दीवाना। इसी नाम की उनकी एक फिल्म अगले महीने रिलीज हो रही है 14 जनवरी को। सनी और बॉबी भी साथ में हैं इस फिल्म में।

धर्मेन्द्र बताते हैं कि अपने में हम तीनों ने मिलकर परिवारों को खूब भावुक किया था, रुलाया था, अब हमने सोचा, हम तीनों मिलकर, जमकर हँसाते हैं, सो यमला पगला दीवाना आ रही है। वे कहते हैं कि बहुत प्यारी फिल्म बनी है। अपनी तरह की कॉमेडी है मगर हास्य से भरे दृश्य भी बड़े कठिन। पंजाब से लेकर महेश्वर, मध्यप्रदेश तक इस फिल्म की शूटिंग हुई है। धर्मेन्द्र के लिए विभिन्न फिल्मों में सरदार जी का गेटअप बड़ा लकी रहा है। सनी भी गदर में तारा सिंह बने थे।

यमला पगला दीवाना में तीनों का यही गेटअप है। रोचक चरित्रों का निर्वाह किया है और खास बात यह कि इस फिल्म में धर्मेन्द्र की शोले से लेकर प्रतिज्ञा तक सबको, दिलचस्प ढंग से याद किया गया है। प्रतिज्ञा, पिछली सदी में पचहत्तर के साल में खूब हिट हुई थी। यह धरम पा जी की ऐसी फिल्म थी, जो लगभग उन्हीं के इशारे पर चलती है। वे एक ऐसा किरदार हैं जो एक सुदूर गाँव में रोमांस करता है, अपना थाना स्थापित करता है, सिपाही भरती करता है और डाकू खलनायक से दो-दो हाथ करता है।

धर्मेन्द्र पर फिल्माया गाना, मैं जट यमला पगला दीवाना, तब का हिट गाना था जो नायिका हेमा मालिनी के लिए उन्होंने गाया था। धर्मेन्द्र के बंगले पर उनको शुभकामनाएँ देने अनिल शर्मा, नीरज पाठक, वीरू देवगन आदि बहुत से कलाकार-फिल्मकार आये थे मगर टिप्पणीकार की निगाह गयी, बड़े शान्त संजीदा बैठे अर्जुन हिंगोरानी पर।

उनको कहा कि 1961 मे दिल भी तेरा हम भी तेरे आपने ही निर्देशित की थी धरम जी के लिए और आज पचास साल हो गये हैं उनको इण्डस्ट्री में। कब क्यों और कहाँ, कहानी किस्मत की आदि और भी धरम-फिल्मों के निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी की धरम जी से अटूट दोस्ती है, चेहरे पर खुशी और गर्व के भाव लाकर कहते हैं वे, मेरा यार वर्सेटाइल एक्टर है।

Monday, December 13, 2010

यमला पगला दीवाना

8 दिसंबर को मुंबई में धरम जी के जन्मदिन पर "यमला पगला दीवाना" को लेकर बातचीत हुई। धरम जी कहते हैं कि पिछली बार "अपने" में हमने अपने चाहने वालों को रुलाया था, भावुक कर दिया था मगर वह फिल्म ऐसी थी जिसने एक अटूट और स्नेहिल परिवार के जज्बे को समर्थन किया था। इसीलिए सबने उस फिल्म को सफल भी बनाया था। अपने में मेरे साथ सनी और बॉबी ने भी बहुत अच्छा कम किया था।

अब हम फिर से नए साल में "यमला पगला दीवाना" में आ रहे हैं। यह फिल्म 14 जनवरी को रिलीज़ होगी। इस फिल्म में धमाल है, मस्ती है और हँसने-हँसाने के लिए खूब मनोरंजन। धरम जी का कहना था कि यह फिल्म परिवार के साथ जाकर देखी जा सकती है क्योंकि परिवार की फिल्म है।

"यमला पगला दीवाना" अब से लगभग 35 साल पहले धरम जी की एक सुपरहिट फिल्म "प्रतिज्ञा" के लोकप्रिय गाने "मैं जट यमला पगला दीवाना" से जुड़ती है क्योंकि नाम वहीं से लिया गया है, मगर यह फिल्म हँसने और मनोरंजन करने के साथ ही अपनी ज़मीन, अपनी मिट्टी की पहचान को पाने की बेचैनी को भी बखूबी दिखलाती है..... 

Saturday, November 6, 2010

दीपावली पर धर्मेन्द्र से एक विशेष बातचीत



मेरी अन्तरात्मा
ये मेरे अन्दर एक मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर है जहाँ मेरे ईश्वर, अल्लाह, वाहे गुरु और क्राइस्ट रहते हैं।

अन्तरात्मा से संवाद
अन्तरात्मा मुझसे बात करती है। मुझे रास्ता दिखाती है। अच्छाई-बुराई, नेकी और बदी का अहसास कराती है।

आत्मा भी एक चिराग है
जी हाँ, आत्मा भी एक चिराग है। जब तक भगवान का बसेरा है, ये दीया जलता रहता है।

मैंने देखा है अंधेरा
हाँ, मैंने देखा है अंधेरा। जब इन्सान, इन्सानियत का खून करता है, तब उससे भयानक अंधेरा और क्या हो सकता है? यह अंधेरा, दिन के उजाले में भी हमको देखना पड़ता है।

रोशनी की किरण
जब कोई इन्सान, इन्सानियत के लिए कुछ कर गु$जरता है तो एक रोशनी की एक सुनहरी किरण नजर आती है। तब मन में महसूस होता है उजाला।

जब जलता हुआ दीया देखता हूँ
जब भी मैं जलते हुए दीए को देखता हूँ तो उसे देखकर मन में ख्याल आता है कि ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है मगर है कितनी छोटी सी। इस छोटी सी ज़िंदगी को खुशगवार बनाये रखने के लिए, ज़िंदगी के इस दीए में इन्सानियत का तेल डालते रहो, नेकी की बाती बनाकर उसे अपनी मोहब्बत से रोशन किए रखो।

अंधेरे और उजाले का संघर्ष
पाप और पुण्य की लड़ाई की तरह है अंधेरे और उजाले का संघर्ष।

दिल की दीवाली
बन्दा, जब बन्दे के लिए कुछ कर जाता है तो उस खुशी को महसूस करके मेरा दिल दीवाली मनाता है। मुझे लगता है कि इस दुनिया में हमें एक दूसरे के लिए बेहतर सोचना चाहिए, बेहतर करना चाहिए और सभी को मिलकर एक बेहतर जमाने का ख़्वाब सच करना चाहिए। सबके दिल खुश होंगे तो दिल के दीए एक साथ खुशी से जल उठेंगे, फिर तो दिल की ही दीवाली होगी। दिल मिलकर दीवाली मनाएँगे। मेरा दिल हमेशा ऐसी दीवाली के स्वागत और सत्कार के लिए अपनी उम्मीदों के दरवाजे खोलकर बाँहें फैलाए तैयार है।

अपनों की दुनिया
बन्दा, बन्दे को कभी जिस्मानी, रूहानी या दिमागी या दिली दुख न पहुँचाए और बन्दा, बन्दे की हिम्मत, प्यार, हौसला, इज्ज़त, वकार और प्यार बन जाए तो फिर अपने ही अपने होंगे इस दुनिया में, कोई भी गैऱ नहीं रहेगा।

बचपन की दीवाली
ज़िंदगी की पहली दीवाली की कुछ मद्घम सी यादें हैं जब माँ कोरी माटी के दीए पानी की बाल्टी में डालती थीं। हम सब भाई-बहन मिलकर रुई की बाती बनाते थे। सरसों के तेल का कनस्तर घर में आ जाता और उस रात का बेसब्री से इन्तजार होता जब हम मिलकर दीयों को थाली में रखकर घर की नुमायाँ जगहों को दीयों से सजाने में जुट जाते।  

पटाखे
बचपन में तो खूब चलाये तरह-तरह के पटाखे लेकिन अब लगता है कि पटाखों से पर्यावरण और आबोहवा को कितना नुकसान पहुँचता है। बचपन में तो हर पटाखा अच्छा लगता था, पटाखा क्या हर चीज अच्छी लगती थी। बच्चों को भी दीवाली का सबसे ज्य़ादा शौक होता है, उसका इन्तजार होता है, मगर जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, बच्चों को भी यह समझाने लगते हैं कि ये मत करो, वो मत करो

एक नया दौर
मेट्रो, अपने, जॉनी गद्दार आदि फिल्मों के बाद जिस तरह की रोशनी सामने न$जर आती है, मेरी अन्तरात्मा मुझे एक तरह से आश्वस्त करती है कि एक नया दौर शुरू हो रहा है मेरे जीवन में। मैं आप सबके लिए भी यह दुआ करता हूँ कि नया साल आपके लिए भी बेपनाह खुशियाँ लाये। हम सबका जीवन खुशगवार हो। रोज-रोज की घटना-दुर्घटनाएँ खत्म हो जाएँ। सारी दुनिया में अमन, सुकून हो जाए। सारी दुनिया बन जाये एक कुनबा, ऐसी हसरतों का कुछ अरमान है मेरा।

कोई शेर......
दुआ ए दिल मेरी हर दिल से अदा हो जाए
मोहब्बत, फ़कत मोहब्बत मजहब ए बशर हो जाए
दिल ए जहाँ से मिट जाएँ सरहदों की खऱाशें
वतन, हर वतन का मालिक सारा जहाँ हो जाए
यही चाहता है धर्मेन्द्र आपका। ऐसा हो जाए, तो क्या हो जाए, सोचिए! धर्मेन्द्र की यही हसरत है। हम भला ऐसा क्यों नहीं कर सकते? कर सकते हैं। कर सके, तो देखिए, दुनिया क्या की क्या हो जायेगी!