Tuesday, November 2, 2010

यमला पगला दीवाना

धर्मेन्द्र के बारे में यह भी एक सचाई है कि एक बार सफलता की शुरूआत के बाद से धर्मेन्द्र का ग्राफ कभी प्रभावित नहीं हुआ। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि वे किसी भी समय की सितारा दौड़, गलाकाट या राजनीति से दूर ही रहे। वे कहते हैं कि मैं इस भयानक दौड़ से अपने को दूर रखता हूँ। यह दौड़ आपसी रिश्तों को भी खराब कर देती है। मेरी अपनी मान्यता यही है कि मैं हमेशा हरदम अपनी जगह पर ही हूँ। मेरी फिल्म चाहे कितने भी अन्तराल के बाद आये, मुझे ऐसे समय मेरे लिए दी जाने वाली, वापसी वाली उपमा या विशेषण बिल्कुल पसन्द नहीं है। मेरा अपना मानना तो यही है कि मैं कहीं गया ही नही हूँ तो वापसी कैसी? धर्मेन्द्र सबसे बड़ा विश्वास अपने काम पर रहा है। दूसरा विश्वास वे अपने प्रशंसकों पर करते रहे हैं।

अपने चाहने वालों को भगवान का दरजा देने वाले धर्मेन्द्र कहते भी हैं कि वे आज जो कुछ भी हैं, अपने चाहने वालों की वजह से ही हैं। चाहने वालों ने ही उनको यह जगह बख्शी है, नहीं तो लगातार लगभग पचास साल होते हुए आये, वही प्यार, वही सम्मान कहाँ मिलता। धर्मेन्द्र कहते हैं कि एक सच्चे कलाकार के मुरीद की कोई जात-बिरादरी नहीं होती। मेरे चाहने वालों की भी कोई जात-बिरादरी नहीं है। जो मेरी फिल्में इतनी रुचि और चाव से देखते हैं, जो हर शहर में मेरे लिए पलक पाँवड़े बिछाए मेरा इस्तकबाल करने के लिए धूप, आंधी, पानी और बरसात की परवाह नहीं करते, उनके प्यार का बदला तो कभी भी मैं चुका नहीं पाऊँगा। ये वे ही चाहने वाले हैं जिन्होंने मुझे ही नहीं मेरे बेटों सनी और बॉबी को भी वही प्यार दिया है। मैं तो इन बच्चों से कहता हूँ कि बेटे इनको हमेशा तवज्जो दो। इनके दिल को खुशी मिले वो करो।

दूर-दूर से लोग कितने आशाएँ और उम्मीदों के साथ केवल एक बार चेहरा देखने, हाथ मिलाने, पास खड़े होने के लिए भीड़ में, परेशानियों में तमाम तरह के संघर्ष करके मिलने आते हैं, उनको उनका चाहा प्यार दे दिया तो समझ लो, हमारा कलाकार होना सार्थक है। जब धरम जी चेहरे पर भरपूर मुस्कराहट और गर्व के भाव से कहते हैं कि आज तो क्या कभी भी मैं अपने चाहने वालों का दिल नहीं तोड़ सकता, तो उनके चेहरे पर पारदर्शिता, नैतिकता और स्वच्छता अपनी भरपूर चमक के साथ प्रकट होती है।

लगभग दो सौ से अधिक फिल्मों के माध्यम से धर्मेन्द्र ने न जाने कितने ही किरदारों को परदे पर साकार किया है। दर्शकों के बीच उनके सभी किरदार अपने-अपने ढंग से प्रतिष्ठिïत हैं। साठ से लेकर अस्सी के दशक तक उनकी फिल्मों की आवाजाही द्रुत गति से बनी रही। बहुत सारी फिल्मों में उन्होंने कई चेहरे, कई प्रवृत्तियों को जिया। खास बात यह रही कि उनको हमेशा पसन्द किया गया। रामानंद सागर की फिल्म आँखें ने उनको इण्डियन जेम्स बॉण्ड के रूप में पहचान दी। रूमानी किरदार, बुरा आदमी, कानून का रक्षक, सच्चा और स्वाभिमानी चरित्र, बॉक्सर, फाइटर टाइप के चरित्र हों या इसके अलावा कुछ और, धर्मेन्द्र सभी मे प्रभावशाली ही नजर आये। कॉमेडी में धर्मेन्द्र कुछ अलग ही रेंज के आदमी दिखायी पड़ते हैं जिसका उदाहरण तुम हसीं मैं जवाँ, प्रतिज्ञा, चाचा- भतीजा, गजब, शोले, चुपके-चुपके, नौकर बीवी का जैसी फिल्में हैं।

एक खास बात और देखने में आती है और वह यह है कि फिल्म के मुख्य किरदार से इतर बदले भेस वाले साधु बाबा या दाढ़ी- मूँछ लगाकर धरम जी जिस तरह की कॉमेडी करते हैं, वह अत्यन्त अनूठी, सर्वोत्तम और दिलचस्प लगती है। उदाहरण के लिए मेरा गाँव मेरा देश, चरस, चाचा-भतीजा आदि फिल्मों को यहाँ पर याद किया जा सकता है।   शोले तो बीसवीं सदी की एक सबसे अहम फिल्म है, जिसका धर्मेन्द्र भी एक अहम हिस्सा हैं। हम जरा याद करे इस बड़ी फिल्म के तमाम बड़े सितारों को - संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, हेमा माालिनी, जया बच्चन, अमजद खान, इन सबके बीच यदि वीरू बने धर्मेन्द्र को माइनस कर दें तेा शोले का क्या अस्तित्व है़?

धर्मेन्द्र भारतीय सिनेमा में एक यशस्वी उपस्थिति हैं। एक बड़े कैनवास में अपनी रेखांकित करने योग्य जगह बनाने वाला सदाबहार सितारा हैं वे। लगभग दस वर्ष हुए, उनको फिल्म फेअर ने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया था। एक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड उनको पूना में पिफ की ओर से कुछ दिन पहले मिला। एक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड उनको आइफा ने दिया है।  मेट्रो फिल्म में अपनी विशेष भूमिका से धरम जी चर्चा में आये मगर जून के आखिरी सप्ताह में रिली$ज फिल्म अपने ने जिस तरह से देश भर में इस महानायक का स्वागत किया है, वह उल्लेखनीय है। एक बॉक्सर पिता-पुत्रों की कहानी को दर्शकों ने बेहद पसन्द किया है। हिन्दी सिनेमा में धर्मेन्द्र की छवि बेशक मारधाड़ वाले हीरो की, रोमांटिक हीरो की बनी और खूब सफल भी रही मगर भावप्रवण भूमिकाओं में वे जिस प्रकार अपनी जगह बनाते हैं वो रेखांकित किए जाने योग्य है। एक लम्बे समय बाद उनको इस तरह की भूमिका करने का अवसर मिला और उन्होंने इस भूमिका में अपनी रेंज दिखायी।

इस समय वे कुछ फिल्मों में एक साथ सक्रिय हुए हैं जिनमें उनके घर की एक कॉमेडी फिल्म यमला पगला दीवाना है। फिल्म में उनके साथ बॉबी और सनी भी हैं। जाहनू बरुआ ने उनको लेकर एक फिल्म हर पल हाल ही में पूरी की है।
                       

2 comments:

  1. dharmendra ji sachmuch bahut kamaal ke kalaakaar hain. unki kuchh filmein to gazab ki hain jo darshakon ke mann mein gahre ankit ho jaati hai. chupke chupke cinema mein unki adayagi ke kya kahne. waise wo sadabahaar abhineta hain aur har bhoomika ke anuroop khud hin dhal jaate hain. unke baare mein bahut see baaten aapke lekh se pata chalti hai, bahut dhanyawaad aapka.

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  2. व्यक्तिशः आपका आभारी हूँ जेन्नी जी की आपने सभी टिप्पणियों को पढ़ा और अपने महत्वपूर्ण विचार दिये,इस पोस्ट के पहले वाली टिप्पणी को छोडकर। उसे भी पढ़ लेने का अनुरोध है, वक्त मिलने पर।
    धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा के सदाबहार सितारे इसलिए हैं कि वे अपने किरदारों में समाहित हो जाया करते हैं। साठ के दशक से ही उनमें एक स्वप्नदृष्टा भारतीय चेहरा नज़र आया है। यह छबि लंबे समय बरकरार रही है। बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी से लेकर रमेश सिप्पी तक वे गुणी निर्देशकों के पसंदीदा अभिनेता रहे हैं।

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