Thursday, October 21, 2010

धर्मेन्द्र के कड़वे अनुभव

अपनी पहली फिल्म मे ही धर्मेन्द्र ने जिस तरह की अपनी पहचान स्थापित की, वह दीर्घस्थायी हुई। दिलचस्प बात यह भी रही कि अर्जुन हिंगोरानी और धर्मेन्द्र की दोस्ती बड़ी मजबूती के साथ स्थापित हुई। उस समय की एक अहम फिल्म शोला और शबनम में भी धर्मेन्द्र को अर्जुन हिंगोरानी ने ही निर्देशित किया था। यह फिल्म सशक्त कहानी, जज्बाती फलसफ़े और मधुर गीत-संगीत की वजह से काफी सफल रही थी। अर्जुन हिंगोरानी ने फिर अपनी हर फिल्म में उनको नायक लिया, जैसे कब क्यों और कहाँ, कहानी किस्मत की आदि तमाम फिल्में। आज भी यह दोस्ती वैसी ही है।

मैं 8 दिसम्बर को धरम जी के ऐसे कई जन्मदिवसों का प्रत्यक्षदर्शी हूँ जिसमें अर्जुन हिंगारोनी उनसे मिलने आये, और जिस प्यार और यार के ढंग से बातें होते हुए सुनों तो सुखद विस्मय ही होता है। अर्जुन हिंगोरानी कहते हैं, मेरा यार वर्सेटाइल एक्टर है। उस जैसा एक्टर, उस जैसा इन्सान आज मिलना मुश्किल है। उसमें असाधारण प्रतिभा है जिसका इस्तेमाल तो अभी हुआ भी नहीं है। उस जैसा इन्सान हमेशा अपने चाहने वालों के दिलों में मौजूद रहता है। यह वाकई सच बात है।

भारतीय सिनेमा में धर्मेन्द्र के व्यक्तित्व की स्थापना देखा जाये तो स्वयंसिद्घा प्रतिभा की स्थापना है। धर्मेन्द्र फिल्म जगत में सपने और उम्मीदें लेकर आये थे। उनका कोई गॉड फादर यहाँ नहीं था जो उनके लिए सिफारिश करता। उनको शुरूआत में जिस तरह का संघर्ष करना पड़ा, वो कम नहीं है। जब भी वे थक-हारकर निराश होते थे तो उनको अपनी माँ की उम्मीदों से भरी आँखें याद आ जाती थीं। यही स्मरण उनको एक बार फिर संघर्ष के लिए स्फूर्त कर देता था। अपने लम्बे संघर्ष मे धर्मेन्द्र ने सिनेमा के पूरे जगत को बहुत धीरज के साथ देखा और परखा।

ऐसे कई निर्देशक थे जो आगे चलकर धर्मेन्द्र के शरणागत हुए मगर संघर्ष के वक्त उनका रुख कुछ दूसरा ही होता था। जिस फूल और पत्थर फिल्म ने समकालीन परिदृश्य में धर्मेन्द्र की दुनिया को एक रात में बदल देने का काम किया था, उस फिल्म के निर्देशक से ही धर्मेन्द्र के कड़वे अनुभव रहे मगर बड़े दिल के धर्मेन्द्र ने आगे भी किसी तरह का प्रतिवाद नहीं किया। इस फिल्म का वो शॉट सबसे ज्यादा प्रशंसनीय और मानवीर होकर उभरा था जिसमें नशे से लबालब नायक अपने घर लौटता है तो बाहर पेड़ के नीचे उसको जानने-पहचानने वाली बूढ़ी औरत बरसात और ठंड से ठिठुरती नजर आती है। यह हीरो कुछ पल को वहाँ ठिठकता है और फिर अपनी कमीज उतारकर उस बुढ़ी औरत के ऊपर डालकर लडख़ड़ाते कदमों से घर की ओर बढ़ जाता है। इस एक दृश्य ने इस महानायक के मानवीय पहलू को ही एक तरह से रेखांकित किया था। अपनी जिन्दगी में ऐसी मानवताएँ धर्मेन्द्र ने कई बार व्यक्त की हैं।

दरअसल धर्मेन्द्र शख्सियत ही उस तरह की है, जिनके सामने हर वो आदमी गहरे प्रायश्चित की मुद्रा में नतमस्तक हुआ है जिसे किसी जमाने में धर्मेन्द्र के आने वाले कल का अन्दाजा ही नहीं था। धर्मेन्द्र अपने बड़े से कमरे में सामने दीवार पर लगी माँ की तस्वीर देखकर भावुक होकर बताते हैं कि सफलता के बाद पंजाब से माँ जब बम्बई पहली बार मेरे पास आयीं तो रेल से उतरने के बाद उन्होंने मेरी फिल्म के बड़े-बड़े पोस्टर देखे तो मारे खुशी के उनके आँसू निकल आये और मूच्र्छा भी आ गयी। बाद मे उन्होंने जिस तरह से मुझे प्यार दिया, उसे बता पाना कठिन है। अपने पिता से खूब डरने के बावजूद धर्मेन्द्र उनका बहुत आदर करते रहे हैं। फिल्म के बारे मे उनसे बात करना तो दूर, सोचना तक धर्मेन्द्र के लिए तब सम्भव नहीं था।

वे बतलाते हैं कि बचपन से ही वे अपने पिता के पैर घण्टों दबाया करते थे। देर तक दबाते हुए थक जाता था तब भी वे नहीं कहते थे कि बस हुआ। बाद में जब बम्बई आ गया तो वह अवसर ही जाता रहा। फिर पिताजी जब बम्बई आये तक मैं पाँच-पाँच शिफ्टों में काम कर रहा था। देर रात अक्सर घर लौटता था, कई बार सुबह देर तक सोया करता। ऐसे ही एक दिन देर रात शूटिंग से लौटा, तो उस समय हल्की सी ले रखी थी। पिताजी के कमरे के सामने से निकला, तो न जाने कैसे पैर दबाने की याद हो आयी। मैं वैसे ही धीरे-धीरे उनके कमरे की ओर बढ़ चला और पलंग पर उनके पैर के पास बैठकर पैर दबाने लगा। पिताजी उस समय जाग रहे थे। मुझे पैर दबाता देख, वे बोले, अगर तेरे को पीने के बाद पैर दबाने की याद आती है तो रोज पिया कर.........।

3 comments:

  1. kalakaar dharmendra ke kadwe anubhav mein ek achhi baat ye bhi hui ki sangharsh ke daur ke baad wo kalakaar nahin balki star ban gaye, aur ek ye bhi baat ki pine ke baad baabuji ka pair dabana yaad raha. dharmendra sahab ke sansmaran aapki kalam se padhkar achha laga. shubhkaamnaayen.

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  2. जेन्नी जी, धरम जी के इस ब्लॉग में आपका आना और प्रोत्साहक प्रतिक्रिया देना, बहुमूल्य है. मैं इस ब्लॉग को पठनीय और लोकप्रिय बनाना चाहता हूँ, ऐसी टिप्पणी अनमोल हैं, बहुत बहुत आभार आपका जी.

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  3. Peene ke baad pitaji ke per dabaana dil ko choo gaya. Sadabahar Dharmedra ko Salaam!

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