Saturday, November 6, 2010

दीपावली पर धर्मेन्द्र से एक विशेष बातचीत



मेरी अन्तरात्मा
ये मेरे अन्दर एक मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर है जहाँ मेरे ईश्वर, अल्लाह, वाहे गुरु और क्राइस्ट रहते हैं।

अन्तरात्मा से संवाद
अन्तरात्मा मुझसे बात करती है। मुझे रास्ता दिखाती है। अच्छाई-बुराई, नेकी और बदी का अहसास कराती है।

आत्मा भी एक चिराग है
जी हाँ, आत्मा भी एक चिराग है। जब तक भगवान का बसेरा है, ये दीया जलता रहता है।

मैंने देखा है अंधेरा
हाँ, मैंने देखा है अंधेरा। जब इन्सान, इन्सानियत का खून करता है, तब उससे भयानक अंधेरा और क्या हो सकता है? यह अंधेरा, दिन के उजाले में भी हमको देखना पड़ता है।

रोशनी की किरण
जब कोई इन्सान, इन्सानियत के लिए कुछ कर गु$जरता है तो एक रोशनी की एक सुनहरी किरण नजर आती है। तब मन में महसूस होता है उजाला।

जब जलता हुआ दीया देखता हूँ
जब भी मैं जलते हुए दीए को देखता हूँ तो उसे देखकर मन में ख्याल आता है कि ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है मगर है कितनी छोटी सी। इस छोटी सी ज़िंदगी को खुशगवार बनाये रखने के लिए, ज़िंदगी के इस दीए में इन्सानियत का तेल डालते रहो, नेकी की बाती बनाकर उसे अपनी मोहब्बत से रोशन किए रखो।

अंधेरे और उजाले का संघर्ष
पाप और पुण्य की लड़ाई की तरह है अंधेरे और उजाले का संघर्ष।

दिल की दीवाली
बन्दा, जब बन्दे के लिए कुछ कर जाता है तो उस खुशी को महसूस करके मेरा दिल दीवाली मनाता है। मुझे लगता है कि इस दुनिया में हमें एक दूसरे के लिए बेहतर सोचना चाहिए, बेहतर करना चाहिए और सभी को मिलकर एक बेहतर जमाने का ख़्वाब सच करना चाहिए। सबके दिल खुश होंगे तो दिल के दीए एक साथ खुशी से जल उठेंगे, फिर तो दिल की ही दीवाली होगी। दिल मिलकर दीवाली मनाएँगे। मेरा दिल हमेशा ऐसी दीवाली के स्वागत और सत्कार के लिए अपनी उम्मीदों के दरवाजे खोलकर बाँहें फैलाए तैयार है।

अपनों की दुनिया
बन्दा, बन्दे को कभी जिस्मानी, रूहानी या दिमागी या दिली दुख न पहुँचाए और बन्दा, बन्दे की हिम्मत, प्यार, हौसला, इज्ज़त, वकार और प्यार बन जाए तो फिर अपने ही अपने होंगे इस दुनिया में, कोई भी गैऱ नहीं रहेगा।

बचपन की दीवाली
ज़िंदगी की पहली दीवाली की कुछ मद्घम सी यादें हैं जब माँ कोरी माटी के दीए पानी की बाल्टी में डालती थीं। हम सब भाई-बहन मिलकर रुई की बाती बनाते थे। सरसों के तेल का कनस्तर घर में आ जाता और उस रात का बेसब्री से इन्तजार होता जब हम मिलकर दीयों को थाली में रखकर घर की नुमायाँ जगहों को दीयों से सजाने में जुट जाते।  

पटाखे
बचपन में तो खूब चलाये तरह-तरह के पटाखे लेकिन अब लगता है कि पटाखों से पर्यावरण और आबोहवा को कितना नुकसान पहुँचता है। बचपन में तो हर पटाखा अच्छा लगता था, पटाखा क्या हर चीज अच्छी लगती थी। बच्चों को भी दीवाली का सबसे ज्य़ादा शौक होता है, उसका इन्तजार होता है, मगर जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, बच्चों को भी यह समझाने लगते हैं कि ये मत करो, वो मत करो

एक नया दौर
मेट्रो, अपने, जॉनी गद्दार आदि फिल्मों के बाद जिस तरह की रोशनी सामने न$जर आती है, मेरी अन्तरात्मा मुझे एक तरह से आश्वस्त करती है कि एक नया दौर शुरू हो रहा है मेरे जीवन में। मैं आप सबके लिए भी यह दुआ करता हूँ कि नया साल आपके लिए भी बेपनाह खुशियाँ लाये। हम सबका जीवन खुशगवार हो। रोज-रोज की घटना-दुर्घटनाएँ खत्म हो जाएँ। सारी दुनिया में अमन, सुकून हो जाए। सारी दुनिया बन जाये एक कुनबा, ऐसी हसरतों का कुछ अरमान है मेरा।

कोई शेर......
दुआ ए दिल मेरी हर दिल से अदा हो जाए
मोहब्बत, फ़कत मोहब्बत मजहब ए बशर हो जाए
दिल ए जहाँ से मिट जाएँ सरहदों की खऱाशें
वतन, हर वतन का मालिक सारा जहाँ हो जाए
यही चाहता है धर्मेन्द्र आपका। ऐसा हो जाए, तो क्या हो जाए, सोचिए! धर्मेन्द्र की यही हसरत है। हम भला ऐसा क्यों नहीं कर सकते? कर सकते हैं। कर सके, तो देखिए, दुनिया क्या की क्या हो जायेगी! 

12 comments:

  1. dharmenra par aapka blog dekh kar khushi hui. bachapan mey inki lagbhag har film maine dekhi. yah naayak ab tak mere man mey basaa huaa hai. umeed hai, aap klagataar kuchh n kuchh janakariyaan dete rahenge.

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  2. Finally happy to see a blog on Dharmendra too .
    Keep it up!

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  3. बहुत सुंदर पोस्ट....
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  4. ब्लाग जगत की दुनिया में आपका स्वागत है।

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  5. sunil ji,
    dharmendra saahab ki saamaajik soch ko unse kiye aapke saakshaatkaar ke maadhyam se hum tak pahunchaane keliye bahut dhanyawaad aapka. aapke is blog ke maadhyam se unke baare mein bahut kuchh jaan.ne ko milta hai, jisase hum anbhigya hain. shubhkaamnaayen.

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  6. गिरीश जी, आपने बड़े मन से धरम जी के इस ब्लॉग को पसंद किया, मैं आपका आभारी हूँ। यह मेरा एक गंभीर और सार्थक प्रयास बने, इसकी कोशिश रहेगी।

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  7. अनुपम जी, आपकी खुशी ही हमारा प्रोत्साहन है, आभार।

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  8. सुरेन्द्र जी, आपकी शुभकामनाएँ ही हौसला और प्रेरणा हैं। साथ बने रहिएगा। धन्यवाद।

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  9. डिम्पल जी, आभार आपका।

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  10. धन्यवाद लोकेन्द्र जी।

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  11. संगीता जी, हार्दिक आभार आपके शुभकामनाओं के लिए।

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  12. जेन्नी जी, आपने बहुत अच्छे शब्दों में हौसलाअफजाई की है। धरम जी एक सम्मोहक चेहरा, एक पारदर्शी इंसान हैं। अपने समय के श्रेष्ठ निर्देशकों के साथ उन्होने काम किया है और उन सभी की निरंतर आत्मीयता उन्होने पायी है। मेरा प्रयास है कि धरम जी का आकलन एक अलग नज़रिये से हो, इसी का प्रयास है। आपकी आत्मीय प्रतिक्रियायें इस सृजनात्मक जुनून में प्रोत्साहक रहेंगी। आभारी हूँ।

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